Tuesday, December 03, 2013

हाइकु क्या है....! डा० सत्यभूषण वर्मा के शब्दों में

हाइकु को कुछ पाश्चात्य समीक्षकों ने प्रकृति-काव्य भी कहा है। ऋतु का हाइकु साथ गहरा सम्बंध रहा है। प्रकृति-चित्रों की सजीवता ऋतु से जुड़ी रहती है। प्रायः हाइकु की एक पंक्ति में ऋरु का उल्लेख होता है अथवा ऋतु का संकेत-बोधक कोई प्रतीक-शब्द होता है। हाइकु-दृष्टि मनुष्य को प्रकृति के एक अंग के रूप में देखती है। यहाँ तक कि मनुष्य के कार्य-व्यापार भी न रहकर कहीं-कहीं प्रकृति के साथ जुड़ जाते हैं।
हिन्दी हाइकु में एक भिन्न स्वर उभर रहा है। वह स्वर है सामाजिक और राजनीतिक व्यंग्य का। हिन्दी हाइकु ने मूल हाइकु की लघुता और संक्षिप्तता को अपनाया है पर वस्तु-बोध उसका अपना है। इसे अस्वीकार करना न तो सम्भव होगा और न उचित ही। परन्तु केवल एक सूत्र-वाक्य अथवा शब्द-क्रीड़ा से रचित किसी भी १७ अक्षरी तीन पंक्तियों वाली रचना को "हाइकु" संज्ञा नहीं दी जा सकती। हाइकु की तीन पंक्तियों में प्रत्येक पंक्ति की स्वतंत्र सार्थकता आवश्यक है। प्रत्येक पंक्ति एक समन्वित प्रभाव की सृष्ति करती है। प्रत्येक शब्द साक्षात् अनुभव होता है और कविता के अन्तिम शब्द तक पहुँचते ही एक पूर्ण बिम्ब, एक गहन भाव-बोध पाठक की चेतना को अभिभूत कर लेता है। हाइकु मूलतः एक भाव या स्थिति के सौन्दर्यानुभूति-जन्य चरम क्षण की अभिव्यक्ति की कविता है। जापानी कवि बाशो के अनुसार एक अच्छा हाइकु क्षण की अभिव्यक्ति होते हुए भी किसी शाश्वत जीवन-सत्य की अभिव्यक्ति होता है।

-डा० सत्य भूषण वर्मा
[हाइकु पत्र ६, सितम्बर १९७९ से साभार]

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