Monday, June 11, 2012

शब्द-संयम के साथ भाव-संयम भी


शब्द-संयम के साथ भाव-संयम भी हाइकु के लिये अनिवार्य है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शब्दों में, " एइ कवितागुलेर मध्ये जे केवल वाक्-संयम ता नय, एर मध्ये भावेर संयम।" शब्दों में जो कहा गया है, वह संकेत मात्र है, शेष पाठक की ग्रहण-शक्ति पर छोड़ दिया जाता है। वह जितना कहता है, उससे अधिक अनकहा छोड़ देता है और वह अनकहा उससे अधिक महत्वपूर्ण है जो कह दिया गया है। " ओ ए मारु" की रचना है-
पकड़नेवालों को भी
दे रहे हैं प्रकाश
ये जुगुनू।

[ ओउ हितो नि
आकारि ओ मिसुरु
होतारू का ना ]

"जापानी हाइकु और आधुनिक हिन्दी कविता, सत्यभूषण वर्मा, पृष्ठ, 45"

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