Sunday, May 22, 2011

कल्याणमल लोड़ा

हाइकु कविता सहज अभिव्यक्ति की ही नहीं, सहज अनुभूति की भी कविता है। हाइकु में कहे गये का महत्त्व इसलिए अधिक है कि वह बहुत कुछ अनकहे की समर्थ भूमिका स्पष्ट करता है, जिससे वह भी सम्प्रेषित होकर 'कहा गया' ही बन जाता है। मैं कविता के न तो वैज्ञानिकीकरण का समर्थक हूँ और न उसके अनावश्यक बौद्धिकीकरण का। कविता को सहज होना इसलिए आवश्यक है कि वह जीवन के मौन को मुखर कर सके। हाइकु का व्यंग्य बड़ा ही समर्थ है। ये कविताएँ जीवन की लम्बी दौड़ में लोकप्रिय और सार्थक होंगी - यह मेरा विश्वास है।
- कल्याणमल लोड़ा
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
कलकत्ता विश्व विद्यालय

(हाइकु (भारतीय हाइकु क्लब का लघु पत्र) दिसम्बर- 1978, सम्पादक- डा० सत्यभूषण वर्मा, से साभार)

No comments: