जितना वह हमारे निकट है। ...... हम लोग आज शब्दों के अपव्यय के युग में जी रहे हैं। उसमें इस तरह की कविता की ओर ध्यान आकृष्ट करना इसलिए भी उपयोगी और महत्त्व का है कि हम शायद नये सिरे से कविता की ओर शब्दमात्र की सत्ता पहचान सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि अधिक शब्द कहने से ही अधिक बात कही जाए। कविता को, कम से कम मैं तो अभिव्यक्ति प्रधान नहीं सम्प्रेषण प्रधान मानता हूँ। इसलिए यदि कविता दूसरे तक पहुँचते हुए दूसरे से भी उतना ही आमंत्रित करती है, जितना कि कवि उसे दे रहा है, मैं उसको कविता की बहुत बड़ी सफलता मानता हूँ।
-अज्ञेय
हाइकु (भारतीय हाइकु क्लब का लघु पत्र) दिसम्बर- 1978, सम्पादक- डा० सत्यभूषण वर्मा
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