Sunday, May 29, 2011

प्रोफेसर सत्यभूषण वर्मा

हाइकु मूलतः जापानी छन्द है। जापानी हाइकु में वर्ण-संख्या और विषय दोनों के बंधन रहे हैं। हाइकु की मोटी पहचान  5 , 7 , 5 के वर्णक्रम की तीन पक्तियों की सत्रह-अक्षरी कविता के रूप में है और इसी रूप में वह विश्व की अन्य भाषाओं में भी स्वीकारा गया है। महत्त्व वर्ण-गणना का इतना नहीं जितना आकार की लघुता का है। यही लघुता इसका गुण भी बनती है और यही इसकी सीमा भी। जापानी में वर्ण स्वरान्त होते हैं, हृस्व "अ" होता नहीं। 5 , 7 , 5  के क्रम में एक विशिष्ट संगीतात्मकता या लय कविता में स्वयं आ जाती है। तुक का आग्रह नहीं है। अनुभूति के क्षण की वास्तविक अवधि एक निमिष, एक पल अथवा एक प्रश्वास भी हो सकती है, अतः अभिव्यक्ति की सीमा उतने ही शब्दों तक है जो उस क्षण को उतार पाने के लिए आवश्यक है। यह भी कहा गया है कि एक साधारण नियमित साँस की लम्बाई उतनी ही होती है, जितनी में सत्रह वर्ण सहज ही बोले जा सकते हैं। कविता की लम्बाई को एक साँस के साथ जोड़ने की बात के पीछे उस बौद्ध-चिन्तन का भी प्रभाव हो सकता है, जिसमें क्षणभंगुरता पर बल है।

-प्रोफेसर सत्यभूषण वर्मा
( " हाइकु " (भारतीय हाइकु क्लब का लघु पत्र) , अगस्त- 1978, सम्पादक- डा० सत्यभूषण वर्मा, से साभार)

2 comments:

Santosh Kumar said...

"हाईकू" पर अच्छी जानकारी मिली. धन्यवाद.
दीवाली कि शुभकामनाये, मेरी कविताओं का मेरे ब्लॉग पर अवलोकन करें.

www.belovedlife-santosh.blogspot.com
www.santoshspeaks.blogspot.com

सारिका मुकेश said...

माननीय महोदय,
सादर नमन!
आपका ब्लॉग देखा, मन प्रसन्न्न हो उठा! आप हाइकु साहित्य पर निश्चय ही एक महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं! उच्च कोटि के हाइकु, हाइकु पर इतने अच्छे लेख, हाइकु पुस्तकों की इतनी अच्छी जानकारी सुलभ कराने हेतु साधुवाद! ईश्वर से प्रार्थना है आपका सफर यूँ ही चलता रहे!
सादर/सप्रेम मंगल कामनाएं और कोटिशः धन्यवाद!
सारिका मुकेश